Bhairav Baba

कोतवाल कप्तान श्री भैरव देव जी भगवान शिव के अवतार हैं। भक्तों की थोड़ी सी पूजा-अर्चना से ही वह शीघ्र प्रसन्न हो उठते हैं। भैरव महाराज चतुर्भुजी हैं। उनके हाथों में त्रिशुल, डमरू, खप्पर तथा प्रजापति ब्रा का पांचवां कटा शीश रहता है। भैरव औघड़ बाबा हैं। शंकर भगवान के समान वह नग्न-बदन रहते हैं,किन्तु कमर में बाघाम्बर नहीं, लाल वस्त्र धारण करते हैं। आप शिव जी के समान ही भस्म लपेटते हैं। कोतवाल कप्तान भैरव को उड़द का प्रसाद चढ़ाया जाता है और मूर्ति पर सिन्दूर का चोला चढाया जाता है। चमेली के सुगंध युक्त तिल के तेल में सिन्दूर घोलकर आपका चोला तैयार किया जाता है। भैरव देव जी बाला जी महाराज की सेना के कोतवाल माने जाते हैं, इसलिए इन्हें कोतवाल कप्तान भी कहा जाता है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां ऊपरी बाधाओं के निवारण के लिए आने वालों का तांता लगा रहता है। मंदिर की सीमा में प्रवेश करते ही ऊपरी हवा से पीडि़त व्यक्ति स्वयं ही झूमने लगते हैं और लोहे की सांकलों से स्वयं को ही मारने लगते हैं। मार से तंग आकर भूत प्रे मेंहदीपुर के बाला जी का नाम भक्तों में शक्ति और सामथ्र्य के प्रतीक के रूप में विख्यात है। हनुमान जी के बाल रूप की यहां अर्चना -उपासना की जाती है। बाला जी के दरबार में भूत -प्रेतादि बाधा से ग्रस्त व्यक्तियों का उपचार बिना किसी औषधि, मंत्र-यंत्रादि के चमत्कारिक ढंग से होता है। यहां आकर प्रसाद के रूप में अर्जी करते ही रोगी व्यक्ति का उपचार आरम्भ हो जाता है। यह चमत्कार यहां सहज ही देखा जा सकता है। यह आवश्यक नहीं कि भूत-प्रेतादि बाधाग्रस्त व्यक्ति ही यहां आते हों, बाला जी के नियमित आराधक भी यहां आते हैं। अनेक घरों में यहां प्रतिष्ठित देवता की नियमित आराधना-उपासना भक्ति भाव से की जाती है। कुछ लोगों का मानना है कि भूत-प्रेतादि बाधाओं से ग्रस्त व्यक्ति को ही मेंहदीपुर बाला जी जाना चाहिए परन्तु यह बिल्कुल गलत है। देश-विदेश से करोड़ों भक्त नित्यप्रति बालाजी के दरबार में मात्र उनके दर्शन एवं आर्शीवाद प्राप्त करने के लिऐ उपस्थित होते हैं, जबकि उन्हें कोई रोग अथवा कष्ट नहीं होता। कलियुग में बालाजी महाराज ही एक ऐसे देवता हैं जो अपने भक्त को सहज ही अष्ट सिद्धि नव निधि तदुपरान्त मोक्ष प्रदान कर सकते हैं। तादि स्वत: ही बालाजी के चरणों में आत्मसमर्पण कर देते हैं।